विदिशा: महाशिवरात्रि के अवसर पर जहां शिवालयों को सजाया और संवारा जा रहा है, वहीं विदिशा का ऐतिहासिक पंचमुखी पशुपतिनाथ महादेव मंदिर प्रशासनिक उपेक्षा झेल रहा है। शहर के मध्य स्थित यह मंदिर धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण धरोहर है, लेकिन संरक्षण के अभाव में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच चुका है।
300 साल पुरानी मूर्ति, ऐतिहासिक महत्व से जुड़ा मंदिर
यह प्राचीन मंदिर तिलक चौक से कुछ ही दूरी पर स्थित नंदवाना मोहल्ले में स्थित है, जो पहले से ही धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में श्री राधा रानी मंदिर, श्री जी मंदिर और बड़े बालाजी मंदिर भी मौजूद हैं। भगवान भोलेनाथ का पंचमुखी पशुपतिनाथ रूप यहां 300 वर्षों से स्थापित है, जिसे श्रद्धालु विशेष रूप से पूजते हैं।
मुगल आक्रमण के दौर में अस्तित्व में आया मंदिर
इतिहासकार एडवोकेट गोविंद देवलिया के अनुसार, मुगल शासक औरंगजेब द्वारा मथुरा-वृंदावन के मंदिरों पर हमले के दौरान कई मूर्तियों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया। माना जाता है कि विदिशा का यह पंचमुखी पशुपतिनाथ मंदिर भी उसी दौर में स्थापित हुआ।
व्यापारियों के नाम से जाना जाता है मंदिर
यह मंदिर सेठ जुगलकिशोर-नंदकिशोर के नाम से भी जाना जाता है, जो अग्रवाल समाज के प्रतिष्ठित व्यापारी रहे हैं। कालांतर में इनके परिवार भोपाल स्थानांतरित हो गए और मंदिर की संपत्ति विवादों में उलझ गई। इसके चलते मंदिर और आसपास की संपत्ति जर्जर होती चली गई।
पंचमुखी महादेव की अद्वितीय प्रतिमा
मंदिर में स्थापित पंचमुखी महादेव की प्रतिमा अपनी तरह की अनोखी मूर्ति है। पूर्व में इस मंदिर की सेवा और पूजन के लिए विद्वान ज्योतिषाचार्य पंडित मोतीलाल को नियुक्त किया गया था, लेकिन समय के साथ पारंपरिक पूजा-अर्चना में गिरावट आई और देखरेख की कमी के कारण मंदिर उपेक्षित हो गया।
शहरवासी आहत, संरक्षण की मांग
स्थानीय श्रद्धालु और विदिशा के निवासी इस मंदिर की उपेक्षा से दुखी हैं और इसके संरक्षण की मांग कर रहे हैं। धार्मिक महत्व के बावजूद प्रशासन की लापरवाही के चलते यह मंदिर अपनी ऐतिहासिक पहचान खोता जा रहा है। महाशिवरात्रि के अवसर पर स्थानीय नागरिकों ने प्रशासन से मंदिर के संरक्षण और जीर्णोद्धार की मांग की है ताकि यह धार्मिक धरोहर फिर से अपने गौरव को प्राप्त कर सके।