देहदान: मानव सेवा का अनूठा उदाहरण
देहरादून: देहदान को मानवता की सबसे बड़ी सेवा माना जाता है, और हाल ही में उत्तराखंड के दून मेडिकल कॉलेज में यह एक ऐतिहासिक क्षण बना। ढाई दिन की बच्ची, जो दुर्भाग्यवश हृदय संबंधी बीमारी के कारण बचाई नहीं जा सकी, का देहदान कर उसके माता-पिता ने चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान में योगदान दिया।
दून अस्पताल में बच्ची का देहदान
दून अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. अनुराग अग्रवाल ने बताया कि बच्ची का जन्म 9 दिसंबर को हुआ था और उसे हृदय संबंधी समस्याओं के कारण अस्पताल में भर्ती किया गया था। 11 दिसंबर की सुबह, बच्ची का निधन हो गया। इसके बाद, मोहन और दधीचि देहदान समिति ने बच्ची के माता-पिता को देहदान के लिए प्रेरित किया।
चिकित्सा शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण योगदान
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि देहदान का यह कदम एमबीबीएस छात्रों, एनाटॉमी विभाग, और अन्य चिकित्सा अनुसंधान क्षेत्रों के लिए अत्यंत सहायक साबित होगा। यह देश में पहली बार है कि इतनी कम उम्र की बच्ची का देहदान हुआ है।
समाज के लिए प्रेरणादायक पहल
दून मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने बच्ची के माता-पिता को उनकी मानवता और साहसिक निर्णय के लिए सम्मानित किया। उन्हें एक पौधा भेंट कर कृतज्ञता व्यक्त की गई। अस्पताल प्रशासन ने इस महान कार्य को समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बताया।
देहदान: जीवन के बाद भी सेवा का अवसर
यह घटना एक संदेश देती है कि देहदान मानवता और चिकित्सा जगत के लिए कितना महत्वपूर्ण है। इस पहल से अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिलेगी कि वे अपने अंग या शरीर दान करके चिकित्सा क्षेत्र को आगे बढ़ाने में योगदान दें।