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उत्तराखंड पंचायत चुनाव में सोशल मीडिया स्टार्स का पर्दाफाश: लाखों फॉलोअर्स, वोट गिने 55 और 256!

सोशल मीडिया पर लोकप्रियता और रियल पॉलिटिक्स के बीच गहरी खाई – उत्तराखंड पंचायत चुनाव में यू ट्यूबर कैंडिडेट्स को जनता ने दिखाया आईना

उत्तराखंड पंचायत चुनाव में सोशल मीडिया के सितारों की ज़मीनी हकीकत सामने आ गई है। लाखों फॉलोअर्स के बावजूद कई चर्चित यू ट्यूबर अपनी ही ग्राम पंचायत में हार का मुंह देख बैठे।


🔻 सोशल मीडिया की चमक नहीं चमकी ज़मीनी राजनीति में

रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़ और हल्द्वानी जैसे जिलों में पंचायत चुनाव लड़ रहे लोकप्रिय यूट्यूबरों को जनता ने करारा जवाब दिया। लाखों फॉलोअर्स की सोशल मीडिया बादशाहत यहां जमीनी वोट बैंक में तब्दील नहीं हो सकी।


1. दीपा नेगी उर्फ दीपा पहाड़ी – 1.28 लाख सब्सक्राइबर, वोट सिर्फ 256

रुद्रप्रयाग जिले की दीपा नेगी, जो “दीपा पहाड़ी” नाम से यूट्यूब पर जानी जाती हैं, स्वांरी-ग्वांस घिमतोली ग्राम पंचायत से प्रधानी का चुनाव लड़ीं। उन्हें भरोसा था कि उनकी फैन फॉलोइंग उन्हें जीत दिलाएगी। लेकिन वोटों की गिनती में उन्हें सिर्फ 256 मत मिले।

उनका सोशल मीडिया स्टैट्स:

  • यूट्यूब: 1.28 लाख सब्सक्राइबर

  • फेसबुक: 32,000+ फॉलोअर्स

दीपा की प्रतिक्रिया:

“हे भगवान! अब इन लोगों को कौन समझाए कि अपने ही गांव से उठी थी तो अपने ही गांव से हारना था… भगवान सद्बुद्धि दे आपको।”


2. दीप्ति बिष्ट – 1.5 लाख यूट्यूब फॉलोअर्स, सिर्फ 55 वोट

पिथौरागढ़ की दीप्ति बिष्ट, जो कनालीछीना विकासखंड से मैदान में थीं, को सोशल मीडिया पर तो खूब सपोर्ट मिला था, लेकिन वोटिंग में वे बुरी तरह पिछड़ गईं। उन्हें महज 55 वोट मिले।


3. स्वामी – 30,000 सब्सक्राइबर्स, भी हारे चुनाव

हल्द्वानी के धारी विकासखंड से चुनाव में उतरीं स्वामी को भी बेहद कम वोटों से संतोष करना पड़ा। सोशल मीडिया पर 30,000 से ज्यादा सब्सक्राइबर्स होने के बावजूद वे जनता का दिल नहीं जीत सकीं।


🔍 सबक क्या है?

उत्तराखंड पंचायत चुनाव ने यह साबित कर दिया कि डिजिटल दुनिया की लोकप्रियता वास्तविक राजनीति में तब तक मायने नहीं रखती, जब तक ज़मीनी स्तर पर संपर्क, लोकहित और समुदाय के साथ संबंध मज़बूत न हों।

चुनाव एक्सपर्ट्स कहते हैं:

“पंचायत चुनाव प्रचार की नहीं, पहचान और भरोसे की लड़ाई है।”


📲 सोशल मीडिया बनाम रियल पॉलिटिक्स – क्या कहती है युवा पीढ़ी?

Cyber Youth News से बातचीत में कई युवाओं ने कहा कि

“हम सोशल मीडिया को फॉलो जरूर करते हैं, लेकिन वोट देने से पहले हम यह जरूर सोचते हैं कि यह व्यक्ति गांव के लिए क्या कर सकता है?”


📢 निष्कर्ष:

सोशल मीडिया लोकप्रियता के सहारे राजनीति की गाड़ी नहीं चलती। उत्तराखंड पंचायत चुनाव में यह साफ हो गया कि नेता बनने के लिए लोकसंपर्क, सेवा भावना और जमीनी सच्चाई को समझना अनिवार्य है।

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