देहरादून | 25 अगस्त 2025
उत्तराखंड में इस साल अब तक कुत्ते के काटने के कम से कम 18,000 मामले दर्ज किए गए हैं। राज्य स्वास्थ्य विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, बीते पाँच वर्षों में औसतन 20,000 मामले हर साल सामने आते रहे हैं।
पिछले वर्षों के आंकड़े देखें तो –
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2024 में 23,000
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2023 में 25,000
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2022 में 15,000
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2021 में 26,000 मामले दर्ज किए गए थे।
हरिद्वार में सबसे अधिक मामले
स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, हरिद्वार जिला सबसे ज्यादा प्रभावित है। यहाँ भारी भीड़भाड़ और बढ़ती आवारा कुत्तों की संख्या के चलते कुत्ते के काटने की घटनाएँ अधिक दर्ज की जाती हैं। हरिद्वार नगर निगम के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ. जी.एस. तलियन ने बताया कि “भीड़ के कारण जानवर चिड़चिड़े हो जाते हैं और कई बार यह हमले का कारण बनता है।”
राज्य में आवारा कुत्तों की आबादी
पशुपालन विभाग के 2019 के अनुमान के अनुसार, उत्तराखंड में लगभग 84,000 आवारा कुत्ते थे। नए आंकड़े हर पाँच साल में जारी होते हैं, जिनका इंतजार है।
नसबंदी केंद्र और अभियान
फिलहाल राज्य के 13 जिलों में से केवल 5 जिलों — देहरादून, नैनीताल, पिथौरागढ़, हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर — में एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) सेंटर संचालित हो रहे हैं। अल्मोड़ा में एक केंद्र निर्माणाधीन है और पौड़ी जिले के कोटद्वार में एक केंद्र की योजना है।
शहरी क्षेत्रों में नसबंदी अभियान अपेक्षाकृत प्रभावी रहे हैं, लेकिन ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में अब कुत्तों की संख्या और हमलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है।
राहत की बात: कोई रेबीज मौत नहीं
स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया कि पिछले 5 वर्षों में राज्य में रेबीज से कोई मौत दर्ज नहीं हुई है। इसका श्रेय बढ़ती जागरूकता और समय पर दी जाने वाली एंटी-रेबीज वैक्सीन को दिया जा रहा है।
शहरी विकास विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 2016 से अब तक 90,434 कुत्तों की नसबंदी की जा चुकी है।
मानसून में बढ़ते हमले
विशेषज्ञों का कहना है कि मानसून के मौसम में कुत्ते अधिक आक्रामक और क्षेत्रीय हो जाते हैं। भारी बारिश के कारण भोजन और क्षेत्रीय संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे काटने की घटनाएँ बढ़ जाती हैं।




