नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राज्य के 45 जिलों में बिजली विभाग के निजीकरण के प्रस्ताव पर मंगलवार को कैबिनेट बैठक में निर्णय लिया जाना था, लेकिन फिलहाल इसे स्थगित कर दिया गया है। कयास लगाए जा रहे हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर सकते हैं।
राज्य में एस्मा लागू, कर्मचारियों का विरोध प्रदर्शन
सरकार ने संभावित विरोध को देखते हुए पूरे राज्य में एस्मा (आवश्यक सेवा अनुरक्षण अधिनियम) लागू कर दिया है, जिससे सरकारी विभागों में हड़ताल पर रोक लग सके। इसके बावजूद बिजली विभाग के कर्मचारी निजीकरण के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। कर्मचारी संगठनों का आरोप है कि सरकार दक्षिणांचल और पूर्वांचल विद्युत निगम का निजीकरण करने की योजना बना रही है।
पीपीपी मॉडल का विस्तार: क्या है योजना?
सरकार की योजना पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल का विस्तार करने की है। इसके तहत लगभग 45 जिलों की बिजली वितरण व्यवस्था निजी हाथों में सौंपी जा सकती है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के आगरा और कानपुर में यह व्यवस्था लागू है। यदि प्रस्ताव मंजूर होता है, तो इन जिलों में भी निजीकरण की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
चंडीगढ़ का उदाहरण: बिजली निजीकरण पर विवाद
उत्तर प्रदेश के बिजली विभाग के कर्मचारियों का यह विरोध नया नहीं है। इससे पहले पंजाब के चंडीगढ़ में भी निजीकरण के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन हुए थे। कर्मचारियों ने आरोप लगाया था कि मुनाफे में चल रहे विभाग को एक प्राइवेट कंपनी को सौंपा जा रहा है। साथ ही, उन्होंने बिडिंग प्रक्रिया में अनियमितताओं और ट्रांसफर पॉलिसी की अनुपस्थिति की ओर इशारा किया था।
चंडीगढ़ प्रशासन ने बिजली वितरण के निजीकरण के लिए ‘चंडीगढ़ पावर डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड’ (CPDL) का गठन किया और सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले को आशय पत्र (LoI) जारी किया। इसके बाद निजीकरण की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ाई गई।
ओडिशा मॉडल: निजीकरण के लाभ और चुनौतियां
ओडिशा सरकार ने टाटा पावर के साथ PPP मॉडल के जरिए बिजली वितरण में बदलाव किया था। इसमें प्राइवेट कंपनी के पास 51% और सरकार के पास 49% हिस्सेदारी है। ओडिशा में इस मॉडल के तहत कई सकारात्मक बदलाव देखे गए, जैसे कि:
- भूमिगत बिजली वितरण नेटवर्क की स्थापना।
- बिजली कटौती में कमी।
- तकनीकी खराबी के दौरान वैकल्पिक आपूर्ति।
- फॉल्ट मरम्मत का समय 4 घंटे से घटकर 1 घंटे।
- ट्रांसफार्मर फुंकने की घटनाओं में कमी।
- स्काडा सिस्टम से जुड़े सबस्टेशन।
हालांकि, इन सुधारों के बावजूद, निजीकरण को लेकर कर्मचारियों और आम जनता में कई आशंकाएं बनी हुई हैं।
कर्मचारी संगठन का आरोप और मांग
उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों का कहना है कि निजीकरण से न केवल उनकी नौकरियों पर खतरा है, बल्कि उपभोक्ताओं पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। संगठनों ने सरकार से इस प्रस्ताव को स्थायी रूप से खारिज करने की मांग की है।
सरकार की चुनौती
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने यह प्रस्ताव सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील है। निजीकरण से जहां तकनीकी सुधार और दक्षता बढ़ाने की उम्मीद है, वहीं कर्मचारियों के विरोध और उपभोक्ताओं की चिंता को नकारा नहीं जा सकता।
यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस मुद्दे पर क्या निर्णय लेती है और कैसे कर्मचारियों की चिंताओं को दूर करती है।