हनुमाकोंडा: तेलंगाना के हनुमाकोंडा जिले का छोटा सा गांव कुम्मारिगुडेम, आज एक आदर्श गांव के रूप में जाना जा रहा है। यहां हर घर में कम से कम एक गाय है, और जैविक खेती और डेयरी फार्मिंग की सफलता ने इसे आत्मनिर्भर और समृद्ध बना दिया है।
जैविक खेती से डेयरी फार्मिंग तक का सफर
2014 तक कुम्मारिगुडेम के किसान पारंपरिक खेती से सीमित आय अर्जित कर पाते थे। बदलाव की शुरुआत किसान मरुपका कोटी ने की, जिन्होंने जैविक खेती को अपनाया। उनके इस कदम को स्थानीय विशेषज्ञों और जर्मन परोपकारी मोनिका रिटरिंग का सहयोग मिला। उन्होंने गांव में सतत डेयरी फार्मिंग का रास्ता दिखाया।
हर घर में गाय, हर कोने में समृद्धि
शुरुआत में 30 परिवारों को एक-एक गाय दी गई। अब गांव में 60 परिवारों के पास लगभग 200 गायें हैं। यहां प्रतिमाह 50 किलो घी का उत्पादन होता है, जिसमें से 25 किलो घी विदेशों—अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी—को निर्यात किया जाता है। शेष घी हनुमाकोंडा, वारंगल और हैदराबाद में बेचा जाता है।
कर्जमुक्त किसान और बढ़ी आय
मरुपका कोटी जैसे किसानों की मासिक आय, जो पहले मात्र 3,000 रुपये थी, अब बढ़कर 8,000 रुपये हो गई है। घी और दूध की उच्च गुणवत्ता ने इसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था का केंद्र बना दिया है। जैविक दूध 120 रुपये प्रति लीटर और शुद्ध घी 4,000 रुपये प्रति किलो में बिक रहा है।
गांव बना प्रेरणा का केंद्र
कुम्मारिगुडेम टिकाऊ कृषि पद्धतियों और डेयरी फार्मिंग का एक प्रेरणादायक उदाहरण है। गांव की सफलता ने आसपास के क्षेत्रों को भी इस मॉडल को अपनाने के लिए प्रेरित किया है। कुम्मारिगुडेम अब सिर्फ एक गांव नहीं, बल्कि ग्रामीण विकास और आत्मनिर्भरता की मिसाल बन चुका है।