तेलंगाना की के. चंद्रशेखर राव (KCR) सरकार ने ब्राह्मण समुदाय के लिए विशेष कल्याण योजनाओं की घोषणा की है, जिससे गरीब और जरूरतमंद ब्राह्मणों को शिक्षा, वित्तीय सहायता और रोजगार के अवसर मिल रहे हैं। वहीं, उत्तराखंड में बीजेपी सरकार होने के बावजूद ब्राह्मण समुदाय के लिए कोई विशेष योजना नहीं है। यह सवाल उठता है कि जब तेलंगाना और कई अन्य राज्य ब्राह्मण कल्याण के लिए ठोस कदम उठा सकते हैं, तो उत्तराखंड सरकार इस दिशा में क्यों नहीं सोच रही?
तेलंगाना सरकार का ब्राह्मण समुदाय के लिए समर्थन
तेलंगाना सरकार ने तेलंगाना ब्राह्मण समक्षेम परिषद के तहत कई योजनाएं लागू की हैं, जिनमें शामिल हैं:
✔ छात्रवृत्ति और मुफ्त कोचिंग की सुविधा
✔ आर्थिक रूप से कमजोर ब्राह्मण परिवारों को वित्तीय सहायता
✔ रोजगार और कौशल विकास कार्यक्रम
✔ वरिष्ठ नागरिक ब्राह्मणों के लिए पेंशन योजना
✔ ब्राह्मण कन्याओं के विवाह में आर्थिक सहयोग
तेलंगाना सरकार का तर्क है कि समाज के हर वर्ग को समर्थन मिलना चाहिए, और गरीब ब्राह्मणों को भी सरकारी सहायता की आवश्यकता है।
उत्तराखंड में ब्राह्मणों के लिए कोई विशेष योजना क्यों नहीं?
उत्तराखंड में ब्राह्मण समुदाय की अच्छी-खासी जनसंख्या है, और वे राजनीति, प्रशासन और समाज में प्रभावशाली भूमिका निभाते हैं। इसके बावजूद, उत्तराखंड सरकार ने अब तक ब्राह्मणों के लिए कोई अलग से कल्याणकारी योजना नहीं चलाई। राज्य सरकार अन्य वर्गों के लिए विशेष योजनाएं लागू कर रही है, लेकिन ब्राह्मण समुदाय को केवल सामान्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) की श्रेणी में रखा गया है।
अन्य राज्यों में ब्राह्मण कल्याण योजनाएं
तेलंगाना की तरह, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भी ब्राह्मणों के लिए विशेष योजनाएं लागू की गई हैं। कर्नाटक में गरीब ब्राह्मणों के लिए शिक्षा और आर्थिक सहायता, हिमाचल में ब्राह्मण बोर्ड, और आंध्र प्रदेश में ब्राह्मणों के लिए रोजगार सहायता योजनाएं चलाई जा रही हैं।
क्या उत्तराखंड सरकार ब्राह्मणों की मांग सुनेगी?
उत्तराखंड में कई ब्राह्मण संगठनों ने राज्य सरकार से एक अलग ब्राह्मण कल्याण बोर्ड बनाने और विशेष योजनाएं लागू करने की मांग की है। सवाल यह उठता है कि बीजेपी सरकार, जो खुद को हिंदू समाज की हितैषी बताती है, ब्राह्मण समुदाय की इस जरूरत को कब समझेगी?
जब अन्य राज्य ब्राह्मणों के कल्याण के लिए योजनाएं चला सकते हैं, तो क्या उत्तराखंड सरकार भी इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाएगी, या फिर ब्राह्मण समुदाय की मांगें अनसुनी रह जाएंगी?