उत्तराखंड के लिए एक गौरवशाली पल सामने आया है, जब श्रीनगर निवासी 22 वर्षीय मुकुल बंगवाल ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को सफलतापूर्वक फतह कर लिया। हिमालय की बर्फीली चोटियों को पार करते हुए मुकुल ने न केवल साहसिकता का परिचय दिया, बल्कि एनसीसी और गढ़वाल विश्वविद्यालय का नाम भी रोशन किया। वह वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में बीएससी तृतीय वर्ष के छात्र हैं।
देशभक्ति का प्रतीक बना एनसीसी का झंडा
मुकुल ने एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचते ही वहां राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) का झंडा फहराया। यह पल उनके लिए सिर्फ व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि देशभक्ति और अनुशासन का प्रतीक था। उन्होंने साबित कर दिया कि भारत का युवा अगर ठान ले, तो कोई भी शिखर दूर नहीं। एनसीसी के इस अभियान में मुकुल की भागीदारी पूरे देश के युवाओं के लिए प्रेरणा बन गई है।
साधारण परिवार से असाधारण उपलब्धि तक का सफर
धारी देवी कलियासौड़ के एक साधारण परिवार से आने वाले मुकुल के पिता दुर्गा प्रसाद बंगवाल और मां रजनी देवी ने हमेशा उनके सपनों को समर्थन दिया। उनकी बहन मानसी बंगवाल भी इस ऐतिहासिक क्षण से बेहद उत्साहित हैं। मुकुल का मानना है कि परिवार और गुरुजनों का सहयोग ही उन्हें इस ऊंचाई तक लेकर आया।
संघर्ष, समर्पण और टीम वर्क की मिसाल
मुकुल ने अपनी सफलता का श्रेय परिवार, शिक्षकों और एनसीसी अधिकारियों को दिया है। उन्होंने बताया कि चढ़ाई के दौरान कई बार बेहद कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, लेकिन मानसिक दृढ़ता और उत्तराखंड की जमीनी ताकत ने उन्हें हार नहीं मानने दी।
गढ़वाल विश्वविद्यालय और एनसीसी ने दी बधाई
गढ़वाल विश्वविद्यालय के कुलपति और एनसीसी अधिकारियों ने मुकुल की सफलता पर खुशी जाहिर करते हुए उन्हें बधाई दी है। उन्होंने कहा कि मुकुल की यह उपलब्धि अन्य छात्रों को भी बड़े लक्ष्य तय करने और उन्हें प्राप्त करने की प्रेरणा देगी।
उत्तराखंड के युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत
मुकुल बंगवाल की यह उपलब्धि केवल एक व्यक्तिगत विजय नहीं है, बल्कि पूरे उत्तराखंड की युवा शक्ति और संभावना का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि सही मार्गदर्शन, मेहनत और दृढ़ निश्चय के साथ कोई भी युवा विश्व के सबसे ऊंचे मंचों तक पहुंच सकता है।