नई दिल्ली: संसद के शीतकालीन सत्र के पहले सप्ताह में भारी हंगामे के कारण कामकाज लगभग ठप रहा। दोनों सदनों में विपक्ष के विरोध और कार्यवाही स्थगन के चलते लोकसभा और राज्यसभा में क्रमशः 54 और 75 मिनट ही काम हुआ। विपक्ष ने अडानी मुद्दे, मणिपुर हिंसा, और उत्तर प्रदेश के संभल में हुई हिंसा जैसे मामलों पर चर्चा की मांग को लेकर सरकार को घेरा, जबकि सरकार ने इसे सत्र का अपमान करार दिया।
संवाद की कमी ने बढ़ाई खाई
लोकसभा के पूर्व महासचिव और संवैधानिक विशेषज्ञ पी.डी. थंकप्पन आचार्य ने कहा कि सत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता को आपस में संवाद करना चाहिए। उन्होंने कहा कि विपक्ष के नेताओं को आपसी सहमति से मुद्दे उठाने चाहिए और सरकार को भी चर्चा के लिए अनुकूल माहौल बनाना चाहिए।
नियम 267 पर टकराव
राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने विपक्ष द्वारा नियम 267 के बार-बार उपयोग पर गहरी नाराजगी जताई। उन्होंने इसे कार्यवाही बाधित करने का हथियार बताते हुए कहा, “यह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का अपमान है।” धनखड़ ने सदस्यों से अपील की कि वे देश की जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयास करें।
पहले सप्ताह की स्थिति
- लोकसभा: चार दिनों में कार्यवाही कुल 54 मिनट तक चली।
- राज्यसभा: चार दिनों में 75 मिनट का कामकाज हुआ।
- संसद के दोनों सदनों में सिर्फ वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति का कार्यकाल बढ़ाने पर सहमति बनी।
क्या कहती है सरकार?
संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने बताया कि सत्र के दौरान 16 विधायी और 1 वित्तीय कार्य निर्धारित किए गए हैं। उन्होंने विपक्ष पर सत्र बाधित करने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह जनता के संसाधनों की बर्बादी है।
आगे का रास्ता
पी.डी. थंकप्पन आचार्य ने सुझाव दिया कि दोनों सदनों के अध्यक्षों को कार्य मंत्रणा समिति (बीएसी) की बैठक बुलानी चाहिए, जिसमें सरकार और विपक्ष के बीच एजेंडे पर सहमति बनाई जा सके।
सत्ता और विपक्ष के रिश्ते पर टिप्पणी
आचार्य ने सत्ता और विपक्ष को गाड़ी के दो पहिए बताते हुए कहा, “लोकतंत्र में दोनों की भूमिका महत्वपूर्ण है। यदि एक पहिया निकल जाए, तो गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती।”
संविधान दिवस पर कम कामकाज
26 नवंबर को संसद में संविधान दिवस मनाया गया, लेकिन इसके बाद भी कामकाज बाधित रहा। विपक्ष और सरकार के बीच बढ़ती खाई ने शीतकालीन सत्र की उपयोगिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
संसद का यह गतिरोध देश में सुशासन और लोकतंत्र के लिए चिंताजनक संकेत है, जहां दोनों पक्षों को जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए संवाद और सहयोग का मार्ग अपनाने की जरूरत है।