नई दिल्ली: आज से 16 साल पहले, 26 नवंबर 2008, भारत के इतिहास में एक ऐसा काला दिन बन गया, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। इस दिन पाकिस्तान से आए 10 आतंकवादियों ने समुद्र के रास्ते मुंबई पर हमला कर दिया, जिसने 59 घंटे तक देश को झकझोर कर रख दिया। यह हमला भारत में आतंकवाद के सबसे भीषण अध्यायों में से एक के रूप में दर्ज है।
हमले का खौफनाक सफर
आतंकियों ने समुद्र के जरिए मुंबई में प्रवेश किया और भीड़भाड़ वाले इलाकों को निशाना बनाया। उन्होंने ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल, सीएसटी रेलवे स्टेशन, और नरीमन हाउस जैसे प्रतिष्ठित स्थानों पर हमला कर दिया। आतंकियों ने इन जगहों पर अंधाधुंध गोलीबारी की और निर्दोष लोगों को बंधक बना लिया। ताज और ओबेरॉय होटल में उन्होंने कर्मचारियों और मेहमानों को बंधक बना लिया, वहीं सीएसटी रेलवे स्टेशन पर हुई गोलीबारी में दर्जनों लोग मारे गए।
सुरक्षाबलों की बहादुरी और बलिदान
मुंबई पुलिस, एनएसजी कमांडो, और अन्य सुरक्षा एजेंसियों ने आतंकवादियों का डटकर सामना किया। हेमंत करकरे, विजय सालस्कर, और अशोक कामटे जैसे बहादुर जवानों ने अपनी जान की आहुति देकर देश को बचाने की कोशिश की। 59 घंटे चले ऑपरेशन के दौरान 9 आतंकवादी मारे गए और अजमल कसाब को जिंदा पकड़ा गया। कसाब को 2012 में फांसी दी गई।
भारी जान-माल की क्षति
इस भीषण हमले में 164 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई, और 300 से अधिक लोग घायल हुए। मारे गए लोगों में भारतीयों के साथ-साथ कई विदेशी नागरिक भी शामिल थे। इन हमलों ने देश को आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने और सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करने की सीख दी।
हमलों के बाद का असर
26/11 के बाद भारत ने आतंकवाद के खिलाफ अपनी नीति को और सख्त किया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत ने पाकिस्तान पर दबाव बनाकर आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। यह घटना देश के लिए आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई।
शहीदों को सलाम
हर साल 26 नवंबर को मुंबई हमले के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। यह दिन उन बहादुर जवानों और निर्दोष नागरिकों की याद में मनाया जाता है, जिन्होंने अपनी जान देकर देश को बचाया। 26/11 का दिन न केवल देश के साहस और एकता का प्रतीक है, बल्कि यह आतंकवाद के खिलाफ मजबूती से खड़े होने की प्रेरणा भी देता है।