छत्तीसगढ़ का सरगुजा जिला अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, प्राचीन वास्तुकला, और अद्वितीय कला के लिए विश्वभर में जाना जाता है। उत्तर प्रदेश, झारखंड, उड़ीसा, और मध्य प्रदेश की सीमाओं से सटा यह जिला ऐतिहासिक स्थलों, प्राकृतिक खूबसूरती, और अद्वितीय परंपराओं का संगम है।
सरगुजा का दूसरा राष्ट्रपति भवन: इतिहास का अद्भुत पहलू
सरगुजा जिले में स्थित एक ऐतिहासिक भवन को “दूसरा राष्ट्रपति भवन” कहा जाता है। देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने आजादी से पहले स्वतंत्रता सेनानी के रूप में यहां समय बिताया था। स्थानीय राजपरिवार ने उन्हें पंडो जनजाति के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया था। राष्ट्रपति बनने के बाद 1952 में जब राजेन्द्र बाबू सरगुजा लौटे, तो उन्होंने उसी भवन का दौरा किया। तभी से यह ऐतिहासिक स्थल राष्ट्रपति भवन के रूप में जाना जाने लगा।
यह भवन सिलफिली से 3 किलोमीटर और कमलपुर रेलवे स्टेशन से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह धरोहर स्वतंत्रता संग्राम और छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक विरासत का महत्वपूर्ण प्रतीक है।
रामगढ़ की नाट्यशाला: एशिया की सबसे प्राचीन थिएटर
सरगुजा की रामगढ़ पहाड़ियों में स्थित नाट्यशाला एशिया की सबसे प्राचीनतम नाट्यशाला मानी जाती है। सीता बेंगरा गुफा के पास स्थित इस ओपन थिएटर की अद्वितीय वास्तुकला उस युग के उन्नत शिल्प कौशल को दर्शाती है।
इस प्राचीन थिएटर में मंच और हजारों दर्शकों के बैठने की प्राकृतिक व्यवस्था है। मंच पर आवाज की गूंज को नियंत्रित करने के लिए दीवारों में छेद बनाए गए हैं। कहा जाता है कि महान कवि कालिदास ने अपनी कालजयी कृति मेघदूतम की रचना इसी स्थान पर की थी।
भित्ति चित्र: रजवार हाउस की अमूल्य कला
सरगुजा के रजवार हाउस की भित्ति चित्रकला ने जिले को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई है। स्वर्गीय सोना बाई और सुंदरी बाई जैसी कलाकारों ने इस कला को विदेशों तक पहुंचाया। यह कला न केवल छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि यह भारत की पारंपरिक शिल्पकला की महानता को भी दर्शाती है।

संरक्षण की जरूरत
सरगुजा की यह सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरें देश के गौरव का प्रतीक हैं। इन्हें संरक्षित कर भविष्य की पीढ़ियों के लिए सहेजना आवश्यक है। यह धरोहरें न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे भारत के समृद्ध इतिहास और परंपरा का प्रतिनिधित्व करती हैं।