नई दिल्ली/वॉशिंगटन/बेंगलुरु: दुनियाभर के वैज्ञानिकों और स्पेस एजेंसियों की नजरें अब चांद की सतह पर मौजूद संसाधनों पर टिक गई हैं। पिछले दो दशकों में भले ही एस्ट्रॉइड माइनिंग के प्रयास नाकाम रहे हों, लेकिन हाल के वर्षों में चंद्रमा की सतह से प्लैटिनम ग्रुप मेटल्स (PGMs), हीलियम-3 और पानी जैसे दुर्लभ संसाधन निकालने को लेकर गतिविधियां तेज़ हो गई हैं। लूनर माइनिंग, यानी चांद पर खनन, अब सिर्फ एक विचार नहीं बल्कि हकीकत की ओर बढ़ता मिशन बन चुका है।
चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों पर मौजूद स्थायी छाया वाले गड्ढों में बर्फ और कीमती धातुओं का भंडार बताया जा रहा है। खासतौर पर हीलियम-3, जो भविष्य के फ्यूजन रिएक्टर्स के लिए साफ और शक्तिशाली ऊर्जा स्रोत बन सकता है, वैज्ञानिकों को बेहद आकर्षित कर रहा है। यह तत्व पृथ्वी पर बेहद दुर्लभ है, लेकिन चांद की मिट्टी में अपेक्षाकृत बड़ी मात्रा में पाया जाता है।
अंतरिक्ष में नई होड़: निजी कंपनियों की बड़ी भागीदारी
7 मई 2025 को अमेरिका की दो प्राइवेट कंपनियां—Interlune और Vermeer Corp.—ने चांद से हीलियम-3 निकालने के लिए एक अत्याधुनिक माइनिंग मशीन का प्रोटोटाइप प्रस्तुत किया। यह मशीन हर घंटे 100 मीट्रिक टन चंद्र मिट्टी (Lunar Regolith) निकालने में सक्षम है। Interlune का लक्ष्य 2030 तक चांद से वाणिज्यिक स्तर पर हीलियम-3 का उत्पादन करना है।
इसी बीच, SpaceX, Blue Origin और Moon Express जैसी कंपनियां भी ऑटोमेटेड रोबोटिक माइनिंग टेक्नोलॉजी पर काम कर रही हैं, जो चांद के कठोर वातावरण में भी काम कर सके। अमेरिका का Artemis प्रोग्राम इस दिशा में बड़ा कदम है, जिसमें इंसानों को दोबारा चांद पर भेजने के साथ माइनिंग आधारभूत संरचना तैयार करने की योजना है।
कानूनी अड़चनें भी एक चुनौती
हालांकि, चंद्रमा पर माइनिंग के अधिकार को लेकर अभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों में स्पष्टता नहीं है। 1966 के Outer Space Treaty और 1979 के Moon Agreement जैसे समझौते अंतरिक्ष में किसी भी देश या संस्था को पूर्ण स्वामित्व की अनुमति नहीं देते। लेकिन प्रमुख स्पेस ताकतें जैसे अमेरिका, रूस और चीन ने Moon Agreement को स्वीकार नहीं किया है। अमेरिका ने 2020 में Artemis Accords पेश किया, जिसके तहत ‘सेफ्टी ज़ोन्स’ की अवधारणा लाई गई है, लेकिन इस पर भी कई देश सवाल उठा रहे हैं।
क्यों जरूरी है लूनर माइनिंग?
धरती पर दुर्लभ धातुएं जैसे टाइटेनियम, सिलिकॉन और REEs (Rare Earth Elements) सीमित हैं और माइनिंग से पर्यावरण को भारी नुकसान होता है। चांद पर यदि ये संसाधन सुरक्षित ढंग से निकाले जा सकें, तो पृथ्वी की पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में मदद मिल सकती है।
चांद पर माइनिंग एक वैज्ञानिक, तकनीकी और कानूनी चुनौती जरूर है, लेकिन इसमें छिपी संभावनाएं अपार हैं। अगर अंतरराष्ट्रीय सहयोग और नीति निर्माण सही दिशा में बढ़ता है, तो यह भविष्य की ऊर्जा और संसाधनों की जरूरतें पूरी करने में एक क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है। ऐसे में आने वाले दशक चंद्रमा को केवल शोध की जगह नहीं, बल्कि एक संभावित औद्योगिक केंद्र में बदल सकते हैं।