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नैनीताल: जंगल की आग पर लगी लगाम, विभागीय रणनीति और ग्रामीण सहभागिता ने दिखाया असर

Nainital: Forest fire brought under control, departmental strategy and rural participation showed effect

नैनीताल (उत्तराखंड) – उत्तराखंड के जंगलों में हर साल गर्मी के मौसम में लगने वाली आग न सिर्फ वन संपदा को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि वन्यजीवों और पर्यावरण के लिए भी खतरा बन जाती है। लेकिन इस बार नैनीताल वन प्रभाग में आग की घटनाओं में कमी देखी गई है। इसका श्रेय बेहतर मौसम के साथ-साथ वन विभाग की प्रभावी रणनीति और स्थानीय सहभागिता को दिया जा रहा है।

नैनीताल वन विभाग के डीएफओ चंद्रशेखर जोशी के अनुसार, इस साल अब तक कुल 32 स्थानों पर आग की घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें करीब 26.6 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ। इनमें से 28 घटनाएं आरक्षित वन क्षेत्र में हुईं, जहां 19.6 हेक्टेयर क्षेत्र में आग फैली। जोशी ने बताया कि पिछले पांच वर्षों में पहली बार आग से नुकसान में 10 प्रतिशत तक की कमी आई है।

फायर लाइन से हटाए गए अवरोधक पेड़

डीएफओ जोशी ने बताया कि इस बार आग से निपटने के लिए फायर लाइन में बाधा बनने वाले वृक्षों को चिन्हित कर हटाने की कार्रवाई की गई। सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिलने के बाद नैनीताल की बड़ोंन रेंज के 2.11 किलोमीटर क्षेत्र में 345 पेड़ों की कटाई की गई। इसके अलावा 15,506 पेड़ों को और चिन्हित किया गया है, जिन्हें चरणबद्ध तरीके से हटाया जाएगा।

स्थानीय ग्रामीणों को बना सहयोगी

जंगलों में आग पर जल्दी काबू पाने के लिए वन विभाग ने इस बार ग्राम वन समितियों की मदद ली। नैनीताल के 99 गांवों में 99 समितियां गठित कर ग्रामीणों को प्रशिक्षण दिया गया। इन समितियों ने छोटे स्तर पर लगी आग की घटनाओं को नियंत्रित करने में बड़ी भूमिका निभाई। आग बुझाने की कार्यवाही में ग्रामीणों की सक्रिय भागीदारी ने बड़ा अंतर पैदा किया।

प्रोत्साहन राशि का प्रस्ताव भेजा गया

वन विभाग ने इन ग्राम समितियों को ₹30,000 की प्रोत्साहन राशि देने का प्रस्ताव राज्य शासन को भेजा है। इससे न केवल ग्रामीणों को सहयोग के लिए प्रेरित किया जाएगा, बल्कि भविष्य में जंगलों को आग से बचाने के लिए एक मजबूत सामाजिक तंत्र भी विकसित किया जा सकेगा।

परिणामस्वरूप सुरक्षित हुआ पर्यावरण

इस बार कम आग लगने की घटनाओं से न केवल नैनीताल की वन संपदा सुरक्षित रही, बल्कि वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास भी सुरक्षित रहा। यह उदाहरण बताता है कि मौसम की अनुकूलता, पूर्व योजना और स्थानीय सहभागिता के जरिए बड़ी आपदा को रोका जा सकता है।

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