क्राइमदेश

Kota: मेडिकल छात्र की आत्महत्या, प्रशासनिक लापरवाही पर सवाल

Medical student commits suicide, questions raised on administrative negligence

कोटा के दादाबाड़ी थाना क्षेत्र में एक और कोचिंग छात्र ने आत्महत्या कर ली। मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश निवासी आशुतोष मेडिकल प्रवेश परीक्षा (NEET) की तैयारी कर रहा था और दादाबाड़ी के शास्त्री नगर में किराए के मकान में रह रहा था। घटना का पता तब चला जब उसकी बहन ने उसे रात के खाने के लिए बुलाने का प्रयास किया। यह घटना कोटा में इस साल आत्महत्या का 13वां मामला है।

जानकारी के अनुसार, 20 वर्षीय आशुतोष पिछले तीन साल से नीट की तैयारी कर रहा था और यह उसका तीसरा प्रयास था। वह इस साल की शुरुआत में चार-पांच महीने पहले फिर से कोटा आया था। बुधवार रात को जब उसकी बुआ की बेटी उसे खाना खाने के लिए बुलाने गई, तो उसे आशुतोष का शव लटका मिला। उसने तुरंत मकान मालिक को सूचित किया, जिसके बाद पुलिस मौके पर पहुंची और शव को पोस्टमॉर्टम के लिए एमबीएस अस्पताल भेजा गया। आत्महत्या के पीछे का स्पष्ट कारण अभी तक सामने नहीं आया है, लेकिन प्रारंभिक जांच में इसे पढ़ाई का दबाव और मानसिक तनाव माना जा रहा है।

इस घटना के बाद कोटा में छात्रों की आत्महत्याओं के बढ़ते मामलों को लेकर प्रशासन की जिम्मेदारी पर सवाल उठ रहे हैं। विशेष रूप से जिस पीजी में आशुतोष रह रहा था, वहां सुसाइड प्रिवेंशन रॉड (एंटी हैंगिंग डिवाइस) नहीं थी, जो कि आत्महत्याओं को रोकने के लिए जिला प्रशासन द्वारा अनिवार्य की गई है। प्रशासन ने सभी होस्टल और पीजी संचालकों को इन डिवाइस को लगाने का निर्देश दिया था, लेकिन कई स्थानों पर यह निर्देश अभी तक लागू नहीं हुआ है। प्रशासन ने यह भी दावा किया था कि प्रत्येक होस्टल और पीजी की जांच की जाएगी, लेकिन इस मामले ने उन दावों पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

कोटा, जो भारत में कोचिंग हब के रूप में जाना जाता है, लगातार बढ़ते आत्महत्या के मामलों के चलते छात्रों और अभिभावकों के बीच चिंता का विषय बना हुआ है। आत्महत्या के मामलों में कई बार छात्रों पर अत्यधिक दबाव, परीक्षा की असफलता का डर, और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का जिक्र होता है, जो इन घटनाओं को बढ़ावा देने का कारण बनते हैं।

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