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आरबीआई ने रेपो दर में 0.25% की कटौती की, विशेषज्ञों ने बताया आर्थिक मजबूती के लिए अहम कदम

RBI cuts repo rate by 0.25%, experts say it is an important step for economic strength

लगातार दूसरी बार ब्याज दर में कटौती
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच मौद्रिक नीति की समीक्षा करते हुए लगातार दूसरी बार रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती की है। इसके साथ ही केंद्रीय बैंक ने मौद्रिक नीति के रुख को ‘उदार’ कर दिया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि भविष्य में और भी कटौतियां संभव हैं।

आवास क्षेत्र को मिल सकती है नई गति
LIC हाउसिंग फाइनेंस के एमडी और सीईओ त्रिभुवन अधिकारी ने इस कदम को स्वागत योग्य बताते हुए कहा कि यह निर्णय मध्यम आय वर्ग के लिए आवास खरीदना आसान बनाएगा। उन्होंने कहा कि “यह किफायती आवास क्षेत्र को बढ़ावा देगा और ‘सभी के लिए आवास’ के लक्ष्य को साकार करने की दिशा में मदद करेगा।”

मुद्रास्फीति में नरमी के बीच सही समय पर फैसला
रेटिंग एजेंसी ICRA की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि हाल ही में मुद्रास्फीति में आई नरमी के चलते यह कटौती अपेक्षित थी। उन्होंने उम्मीद जताई कि अगर वैश्विक अनिश्चितताएं बनी रहती हैं, तो आरबीआई आने वाले महीनों में और 0.50 प्रतिशत की कटौती कर सकता है।

आर्थिक विकास को मिलेगा समर्थन
आनंद राठी ग्रुप के मुख्य अर्थशास्त्री सुजान हाजरा के मुताबिक, रेपो दर में कटौती और ‘उदार’ रुख का संकेत साफ है कि आरबीआई आर्थिक वृद्धि को प्राथमिकता दे रहा है। उन्होंने कहा कि “उपभोग और निवेश मांग में सुधार के संकेत मिलने लगे हैं और वित्तीय स्थितियां लगातार अनुकूल हो रही हैं।”

वैश्विक व्यापार तनाव को ध्यान में रखकर लिया गया निर्णय
श्रीराम जनरल इंश्योरेंस के कार्यकारी निदेशक अश्विनी धनावत ने इसे वैश्विक शुल्क युद्ध के बीच एक रणनीतिक फैसला बताया। उन्होंने कहा कि “आरबीआई की भविष्यवाणी के अनुसार चालू वित्त वर्ष में जीडीपी ग्रोथ 6.5% और सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति 4% रहने की उम्मीद है।”

उधारकर्ताओं के लिए राहत की उम्मीद
पैसाबाजार की सीईओ संतोष अग्रवाल ने कहा कि रेपो दर में कटौती और ‘उदार’ नीति रुख से मौजूदा और संभावित उधारकर्ताओं को राहत मिलेगी। इससे लोन की ब्याज दरें घट सकती हैं और उधारी सस्ती हो सकती है।

निष्कर्ष
आरबीआई का यह कदम एक संतुलित और दूरदर्शी नीति का संकेत है जो आर्थिक विकास, निवेश और खपत को गति देने के साथ-साथ मुद्रास्फीति पर नियंत्रण बनाए रखने का प्रयास करता है।

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