नैनीताल: आधुनिकता के इस दौर में युवा तेजी से पाश्चात्य संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जिससे भारतीय पारंपरिक कलाएं धीरे-धीरे विलुप्ति की ओर बढ़ रही हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए, प्रसिद्ध कथक नर्तक आशीष सिंह भारतीय शास्त्रीय नृत्य कथक को पुनर्जीवित करने और उसे नई पीढ़ी तक पहुंचाने में जुटे हैं। वे नैनीताल के स्कूलों में छात्रों को निशुल्क कथक का प्रशिक्षण दे रहे हैं ताकि यह प्राचीन कला जीवित रह सके।
पंडित बिरजू महाराज के शिष्य हैं आशीष सिंह
नैनीताल में कथक की अलख जगाने वाले आशीष सिंह प्रसिद्ध कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज के शिष्य हैं। मूल रूप से वाराणसी के रहने वाले और वर्तमान में वृंदावन में बस चुके आशीष सिंह, भारतीय शास्त्रीय नृत्य कथक के प्रमुख कलाकारों में से एक हैं। उन्होंने पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज की कथक वर्कशॉप में इस नृत्य की बारीकियां सीखी हैं और अब इसे आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
बॉलीवुड और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दिखा चुके हैं अपनी प्रतिभा
आशीष सिंह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। उन्होंने बॉलीवुड की बाजीराव मस्तानी, देवदास, विश्वरूपा जैसी फिल्मों में कोरियोग्राफी की है। इतना ही नहीं, वे कई अभिनेता और अभिनेत्रियों को कथक की ट्रेनिंग भी दे चुके हैं, जिससे इस नृत्य को बड़े पर्दे पर भी पहचान मिली है।
कॉमनवेल्थ गेम्स में किया भारत का प्रतिनिधित्व
2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स और 2015 के चीन के सिल्क रोड इंटरनेशनल आर्ट फेस्टिवल में आशीष सिंह ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। इसके अलावा, वे बॉलीवुड सिंगर सोना महापात्रा के साथ भी परफॉर्म कर चुके हैं। अब वे उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में कथक के प्रचार-प्रसार में जुटे हैं, जिससे यह पारंपरिक नृत्य फिर से लोकप्रिय हो सके।
भारतीय शास्त्रीय नृत्य को बचाने का संकल्प
आशीष सिंह का मानना है कि बॉलीवुड कथक से हटकर, युवाओं को भारतीय शास्त्रीय नृत्य की शुद्ध परंपरा को अपनाना चाहिए। इसी उद्देश्य से वे देशभर में कथक कार्यशालाओं का आयोजन कर रहे हैं और उत्तराखंड के मंदिरों में कथक का अभ्यास कर इस कला को पुनर्जीवित कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि उत्तराखंड की नई पीढ़ी इस नृत्य को अपनाए और इसे विश्व स्तर पर पहचान दिलाए।
नैनीताल के स्कूलों में दे रहे प्रशिक्षण
नैनीताल में आशीष सिंह बच्चों को पारंपरिक कथक, तोड़ा, टुकड़ा, तिहाई, वंदना, भजन और ठुमरी का प्रशिक्षण दे रहे हैं। उनका उद्देश्य उत्तर भारत के शास्त्रीय संगीत और नृत्य को विलुप्त होने से बचाना है। इससे पहले, वे टिहरी, देहरादून, अल्मोड़ा और हरिद्वार में भी कथक कार्यशालाएं आयोजित कर चुके हैं।
कथक की कार्यशाला के लिए ऐसे करें आवेदन
यदि कोई कथक सीखना चाहता है, तो वह वृंदावन एकेडमी में आवेदन कर सकता है। आशीष सिंह की यह कार्यशाला युवाओं के लिए एक सुनहरा अवसर है, जहां वे निशुल्क कथक सीख सकते हैं और इस कला को आगे बढ़ा सकते हैं।
क्या है कथक नृत्य?
कथक एक शास्त्रीय नृत्य है, जो उत्तर भारत की प्रसिद्ध नृत्य कला में से एक है। कथक का शाब्दिक अर्थ ‘कथा को नृत्य रूप में प्रस्तुत करना’ होता है। इस नृत्य में तेजी, अंगों में लचक, सांसों पर नियंत्रण और भाव-भंगिमा पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
कथक के तीन प्रमुख अंदाज होते हैं:
- शास्त्रीय कथक – पारंपरिक शैली
- समकालीन कथक – आधुनिक नृत्य के साथ मिश्रण
- सूफी कथक – आध्यात्मिक संगीत के साथ नृत्य
कथक नृत्य की खासियत
- ताल और लय का बेहतरीन संयोजन
- तेज गति में नृत्य करने की क्षमता
- गहरी अभिव्यक्ति और भाव प्रदर्शन
निष्कर्ष
आशीष सिंह भारतीय शास्त्रीय नृत्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। उनकी मेहनत और समर्पण से उत्तराखंड में कथक को एक नई पहचान मिल रही है। अगर यह प्रयास इसी तरह जारी रहा, तो आने वाले वर्षों में कथक न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान बनाएगा।