Blogउत्तराखंडराजनीतिसामाजिक

हरीश रावत की ‘काफल पार्टी’ ने बटोरी देहरादून में सुर्खियां, पहाड़ी स्वाद और संस्कृति का अनोखा संगम

Harish Rawat's 'Kafal Party' made headlines in Dehradun, a unique confluence of hilly taste and culture

देहरादून: पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत एक बार फिर उत्तराखंड की पारंपरिक विरासत को नई पहचान दिलाने की मुहिम में जुटे हैं। देहरादून के कारगी चौक पर आयोजित ‘काफल पार्टी’ इस दिशा में उनकी अनोखी पहल है, जिसने न केवल लोगों को स्वादिष्ट फल का स्वाद चखाया, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवंत कर दिया। इस आयोजन में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए, जिससे यह चर्चा का विषय बन गया।

‘काफल’ बना आयोजन का केंद्रबिंदु

काफल, जो गर्मियों में पहाड़ों में पाया जाने वाला बेहद चटपटा और पौष्टिक फल है, इस आयोजन का प्रमुख आकर्षण रहा। हरीश रावत ने बताया कि काफल ना केवल स्वाद में खास है, बल्कि इसके स्वास्थ्य लाभ भी कई हैं। यह पार्टी स्थानीय फलों और संस्कृति को बढ़ावा देने का माध्यम बन रही है।

गांव की सोच से राजधानी की पहल तक

हरीश रावत ने ‘काफल पार्टी’ की शुरुआत 2017 में अपने गांव मोहनरी से की थी। तब यह केवल एक ग्रामीण स्तर पर किया गया आयोजन था, लेकिन अब यह राजधानी देहरादून तक पहुंच गया है और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक बन गया है। रावत का मानना है कि क्षेत्रीय खानपान को उत्सवों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाना आवश्यक है।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिनिधियों की भागीदारी

इस कार्यक्रम में राजनीतिक दलों के नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और बड़ी संख्या में आम लोग शामिल हुए। यह आयोजन सिर्फ खानपान का नहीं, बल्कि सामाजिक संवाद का भी जरिया बना। हरीश रावत ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम राज्य की एकता और सांस्कृतिक गर्व को मजबूत करते हैं।

बाजार में बढ़ी काफल की मांग

काफल की लोकप्रियता अब बाजार में भी झलकने लगी है। देहरादून में इसकी कीमत ₹600 प्रति किलो तक पहुंच गई है। स्थानीय विक्रेता भी इस बढ़ी मांग से खुश हैं। रावत का मानना है कि इस तरह के आयोजन स्थानीय उत्पादों को बाजार और पहचान दोनों दिलाते हैं।

भविष्य की योजना भी तैयार

हरीश रावत भविष्य में ऐसे और भी आयोजन करने की योजना बना रहे हैं। वे भुट्टा, माल्टा, जामुन और ककड़ी जैसे अन्य स्थानीय उत्पादों को लेकर भी इस तरह की पार्टियों का विस्तार राज्य के अन्य हिस्सों तक करना चाहते हैं। उनका उद्देश्य साफ है—उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक और खाद्य परंपरा को जीवित रखना और अगली पीढ़ियों तक पहुंचाना।

Related Articles

Back to top button