नई दिल्ली: मध्य पूर्व में जारी ईरान और इजराइल के बीच बढ़ते टकराव का असर अब वैश्विक ऊर्जा बाजारों में दिखाई देने लगा है। अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में अचानक उछाल आया है, जिससे भारत जैसे बड़े तेल आयातक देश की ऊर्जा नीतियों और कंपनियों पर असर पड़ सकता है।
हालिया आंकड़ों के अनुसार, ब्रेंट क्रूड की कीमत 4.4% बढ़कर 76.45 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई है, जबकि यूएस डब्ल्यूटीआई (वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट) क्रूड में भी 4.28% की वृद्धि हुई है और यह 74.84 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। इस वृद्धि के पीछे ईरान और इजराइल के बीच बढ़ती सैन्य गतिविधियां, तेल एवं गैस परियोजनाओं पर हमले और अमेरिका की तीखी प्रतिक्रियाएं मुख्य कारण माने जा रहे हैं।
गैस उत्पादन और आपूर्ति में अड़चनें
खाड़ी क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण गैस उत्पादन केंद्रों पर आंशिक या पूरी तरह से संचालन रुक गया है। ईरान ने कतर के साथ साझा साउथ पारस गैस क्षेत्र में उत्पादन रोक दिया है, जहां एक हमले के चलते आग लग गई थी। वहीं इजराइल ने अपनी दो प्रमुख गैस परियोजनाओं को बंद कर दिया है, जो मिस्र और जॉर्डन को गैस की आपूर्ति करती थीं।
इससे तरल प्राकृतिक गैस (LNG) की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उछाल आया है और अब यह $13.5 प्रति mmbtu तक पहुंच गई है, जो पहले $12 थी।
घरेलू कंपनियों पर प्रभाव
हालांकि वर्तमान में भारत की घरेलू आपूर्ति पर प्रत्यक्ष असर सीमित है, लेकिन कुछ कंपनियों के लिए आगे की राह कठिन हो सकती है। रिपोर्ट्स के अनुसार, गुजरात गैस, गेल, और पीएलएनजी जैसी कंपनियों के 2025-26 में अपेक्षित गैस खपत लक्ष्य से पीछे रहने की आशंका है। इसकी वजह स्पॉट मार्केट में कीमतों का बढ़ना और बिजली उत्पादन में गिरावट बताई जा रही है।
वहीं, आईजीएल और एमजीएल जैसी सिटी गैस वितरण कंपनियों पर इसका असर कम रहने की उम्मीद है क्योंकि उनका स्पॉट एलएनजी पर निर्भरता सीमित है।
अमेरिका की राजनीतिक बयानबाजी ने भड़काया तनाव
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ईरान के खिलाफ सोशल मीडिया पर दिए गए आक्रामक बयान से तनाव और बढ़ गया है। उनके बयान को संभावित सैन्य हस्तक्षेप का संकेत माना जा रहा है, जिससे वैश्विक ऊर्जा बाजार में अस्थिरता की संभावना बढ़ गई है।
दीर्घकालिक स्थिरता की उम्मीद
हालांकि फिलहाल हालात तनावपूर्ण हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ओपेक+ देशों की उत्पादन रणनीति और भंडारण स्तर 2025-26 तक ब्रेंट क्रूड को लगभग 70 डॉलर प्रति बैरल पर स्थिर बनाए रख सकते हैं। इससे भारत की तेल विपणन कंपनियों को कुछ राहत मिल सकती है और खुदरा कीमतों में नियंत्रण बना रह सकता है।
अगर संघर्ष बढ़ा तो इसका सीधा असर भारत की ऊर्जा रणनीति और आयात व्यय पर पड़ सकता है, जिसके लिए पहले से नीतिगत तैयारियां जरूरी होंगी।