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उत्तराखंड में बिजली महंगी: घरेलू, व्यावसायिक और औद्योगिक उपभोक्ताओं पर महंगाई की मार

Electricity is expensive in Uttarakhand: Inflation hits domestic, commercial and industrial consumers

देहरादून: उत्तराखंड के आम उपभोक्ताओं को एक बार फिर महंगाई का झटका लगा है। उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग (UERC) ने राज्य में बिजली की नई दरों की घोषणा कर दी है। घरेलू, व्यावसायिक, औद्योगिक और अन्य वर्गों के लिए बिजली दरों में औसतन 25 से 46 पैसे प्रति यूनिट तक की बढ़ोतरी की गई है। हालांकि फिक्स चार्ज में कोई बदलाव नहीं किया गया है, लेकिन उपभोक्ताओं की जेब पर अतिरिक्त भार जरूर पड़ेगा।

घरेलू उपभोक्ताओं पर सीधा असर

नई टैरिफ व्यवस्था के अनुसार घरेलू उपभोक्ताओं के लिए बिजली दरों में 33 पैसे प्रति यूनिट तक की बढ़ोतरी की गई है। 0 से 100 यूनिट तक खपत करने वाले उपभोक्ताओं को अब 25 पैसे अधिक चुकाने होंगे, जबकि 101 से 200 यूनिट तक वालों के लिए यह बढ़ोतरी 35 पैसे प्रति यूनिट है। 201 से 400 यूनिट की खपत पर 45 पैसे और 400 यूनिट से अधिक पर भी 45 पैसे प्रति यूनिट की बढ़ोतरी की गई है।

व्यावसायिक और औद्योगिक उपयोगकर्ताओं के लिए भी बढ़े रेट

व्यवसायिक उपभोक्ताओं को भी महंगाई की मार झेलनी पड़ेगी। 4 किलोवाट तक बिजली इस्तेमाल करने वालों को 35 पैसे प्रति यूनिट और 25 किलोवाट तक खपत करने वालों को 40 पैसे प्रति यूनिट की दर से अधिक भुगतान करना होगा। छोटी इंडस्ट्री के लिए 36 पैसे, बड़ी इंडस्ट्री के लिए 46 पैसे और इलेक्ट्रिक व्हीकल चार्जिंग स्टेशनों के लिए 65 पैसे प्रति यूनिट की दर से वृद्धि की गई है।

सरकारी, शिक्षण संस्थान और अस्पताल भी प्रभावित

सरकारी कार्यालयों, शैक्षणिक संस्थानों और अस्पतालों पर भी इस बढ़ोतरी का असर दिखेगा। 25 किलोवाट तक की खपत पर 30 पैसे और उससे अधिक उपयोग पर 35 पैसे प्रति यूनिट की बढ़ोतरी की गई है।

हिमालय क्षेत्र और कृषि आधारित उद्योगों पर भी प्रभाव

हिमाचली क्षेत्रों में रहने वाले उपभोक्ताओं के लिए बिजली दरों में 10 पैसे प्रति यूनिट की बढ़ोतरी की गई है। वहीं, कृषि आधारित बड़े उद्योगों पर फिक्स चार्ज की मार पड़ी है, जिन्हें अब 75 रुपये से 100 रुपये तक अतिरिक्त फिक्स चार्ज देना होगा।

हालांकि फिक्स चार्ज आम उपभोक्ताओं पर नहीं बढ़ाया गया है, लेकिन यूनिट दरों में की गई यह बढ़ोतरी राज्य में बिजली बिलों को महंगा बना देगी। आयोग का कहना है कि यह कदम वितरण लागत और आपूर्ति संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी था। अब देखना होगा कि जनता इस फैसले को किस रूप में स्वीकार करती है।

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