नई दिल्ली, 29 मई: अमेरिका की एक संघीय व्यापार अदालत ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा आयातित वस्तुओं पर लगाए गए नए टैरिफ को असंवैधानिक करार देते हुए उस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। अदालत का कहना है कि ट्रंप ने टैरिफ लगाने में उस अधिकार का उल्लंघन किया है, जो उन्हें कानून के तहत सीमित रूप में दिया गया था।
यह मामला 2 अप्रैल को ट्रंप प्रशासन द्वारा घोषित उस टैरिफ योजना से जुड़ा है, जिसमें अधिकतर आयातों पर 10 फीसदी कर लगाने का प्रस्ताव था। खास तौर पर चीन और यूरोपीय संघ से आयातित वस्तुओं पर अधिक शुल्क तय किए गए थे। ट्रंप ने इस पहल को “लिबरेशन डे” बताया था, लेकिन बाद में कुछ देशों के साथ समझौते की कोशिशों के तहत इन टैरिफ को आंशिक रूप से रोक दिया गया था।
अदालत का सख्त रुख
न्यूयॉर्क स्थित इंटरनेशनल ट्रेड कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने बुधवार को सुनाए अपने फैसले में कहा कि ट्रंप को इस तरह एकतरफा टैरिफ लगाने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है। अदालत ने साफ किया कि 1977 के अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्तियों अधिनियम (IEEPA) के तहत राष्ट्रपति को केवल सीमित आपातकालीन स्थितियों में ही आर्थिक कार्रवाई की अनुमति है।
न्यायाधीशों ने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा इस अधिनियम का उपयोग व्यापक और स्थायी टैरिफ लगाने के लिए करना संविधान के खिलाफ है। उनका मानना है कि इस प्रकार की शक्तियों का प्रयोग सिर्फ संसद के अनुमोदन से ही संभव होना चाहिए, अन्यथा यह विधायी अधिकारों का उल्लंघन माना जाएगा।
ट्रंप प्रशासन का पक्ष
ट्रंप प्रशासन ने तर्क दिया कि अमेरिका का बढ़ता व्यापार घाटा और ड्रग तस्करी जैसी समस्याएं राष्ट्रीय आपात स्थिति के दायरे में आती हैं। ऐसे में बिना कांग्रेस की मंजूरी के कार्रवाई करना जरूरी था। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता कुश देसाई ने कहा कि यह टैरिफ नीति अमेरिकी नौकरियों की रक्षा और व्यापार संतुलन को सुधारने की दिशा में था।
हालांकि अदालत ने इन दलीलों को अपर्याप्त माना और स्पष्ट किया कि टैरिफ नीति को लागू करने के लिए ऐसे आपातकालीन कारणों की कोई ठोस वैधानिक बुनियाद नहीं है।
आगे की राह
यह फैसला ट्रंप के व्यापार नीति दृष्टिकोण के लिए एक बड़ा कानूनी झटका माना जा रहा है, विशेष रूप से उनके दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस निर्णय को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। यदि सुप्रीम कोर्ट भी यही निर्णय कायम रखता है, तो भविष्य में किसी भी राष्ट्रपति के लिए व्यापार नीति में इस तरह की सख्त कार्रवाई करना मुश्किल हो जाएगा।