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उत्तराखंड में उपनल कर्मियों के समर्थन में हरीश रावत का मौन उपवास, सरकार पर बढ़ा दबाव

Harish Rawat's silent fast in support of UPNL employees in Uttarakhand, pressure on the government increased

देहरादून: उत्तराखंड में उपनल कर्मियों के नियमितीकरण को लेकर चल रहे विवाद में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। जहां कर्मचारी संगठन सरकार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करने का दबाव बना रहे हैं, वहीं राज्य सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में फिर से रिव्यू पिटीशन दाखिल कर दी है।

हरीश रावत का मौन उपवास

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने देहरादून स्थित आवास पर उपनल कर्मचारियों के समर्थन में 1 घंटे का मौन उपवास रखा। उन्होंने इसे उपनल कर्मियों की न्याय की मांग के प्रति समर्पित किया। रावत ने कहा, “उपनल कर्मचारियों ने आखिर बीजेपी का क्या बिगाड़ा है? सरकार उन्हें न्याय से वंचित करने के लिए हर संभव उपाय कर रही है।”

सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन

धामी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल की है, जिसका उद्देश्य हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देना है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को उपनल कर्मचारियों को चरणबद्ध तरीके से नियमित करने के निर्देश दिए थे। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में गई है और उपनल कर्मचारियों के साथ बातचीत का रास्ता भी खुला है।

कर्मचारियों का भरोसा

उपनल कर्मचारियों के संगठन के मीडिया प्रभारी प्रदीप चौहान ने कहा कि उन्हें मुख्य सचिव राधा रतूड़ी के उस वादे पर भरोसा है, जिसमें उन्होंने उपनल कर्मचारियों को 25 नवंबर तक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से वार्ता करवाने का आश्वासन दिया है। चौहान ने कहा कि यदि सरकार ने रिव्यू पिटीशन दायर की तो वे कानूनी कदम उठाने से पीछे नहीं हटेंगे।

उपनल कर्मियों की संख्या और आक्रोश

उत्तराखंड में उपनल के माध्यम से कार्यरत करीब 22,000 से अधिक कर्मचारियों में आक्रोश है। हरीश रावत ने मौन उपवास के दौरान कहा कि यह व्रत उन बच्चों और भाई-बहनों के संघर्ष को समर्पित है, जो अपनी आजीविका और सम्मान की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने सरकार से अपील की कि वह न्यायपालिका के आदेशों का पालन करे और उपनल कर्मियों के संघर्ष को सफल बनाये।

यह मामला अब उत्तराखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है, जिससे सरकार की नीतियों और निर्णयों पर सवाल उठने लगे हैं।

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