पटना: बिहार में हजारों लोग अपने नाम मतदाता सूची में वापस जोड़ने के लिए भाग-दौड़ कर रहे हैं। इसकी वजह है सुप्रीम कोर्ट का शुक्रवार का आदेश, जिसने 1 सितम्बर तक एक सीमित मौका दिया है उन लोगों को जिनके नाम सारांश पुनरीक्षण (SIR) के दौरान काट दिए गए थे।
अब मतदाता आधार कार्ड या अन्य 11 स्वीकृत दस्तावेज (ऑनलाइन भी) जमा कर अपना नाम बहाल करा सकते हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर भारी भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
पश्चिम चम्पारण के पुजारी दिवाकर शर्मा का कहना है कि उनकी पत्नी दीप्ति ने पिछले दो चुनावों में बिना किसी परेशानी के वोट डाला, लेकिन इस बार उनका नाम सूची से गायब है। अब उनके पास इसे साबित करने के लिए बस एक हफ्ता बचा है।
आरा, भोजपुर, बेतिया और वाल्मीकिनगर जैसे इलाकों में हालात समान हैं। बूथ-स्तरीय अधिकारी (BLO) मानते हैं कि उन्हें अब तक कोई औपचारिक लिखित निर्देश नहीं मिला।
“हम आधार को तब तक स्वीकार नहीं कर सकते जब तक निर्वाचन आयोग से आधिकारिक आदेश न आए,” पूर्वी चम्पारण के एक BLO ने कहा।
भोजपुर की BLO सुचित्रा सिन्हा ने कहा कि समय-सीमा बहुत कम है। इतने कम वक्त में सभी हटाए गए मतदाताओं से आधार इकट्ठा करना मुश्किल है। वहीं जिला अधिकारियों से लिखित निर्देश न मिलने पर BLOs को डर है कि उनके फैसले बाद में चुनौती दिए जा सकते हैं।
राजनीतिक दलों की निष्क्रियता से हालात और बिगड़े हैं। नियमों के अनुसार दलों को बूथ-स्तरीय एजेंट नियुक्त कर दावों की प्रक्रिया में मदद करनी होती है, लेकिन BLOs शिकायत करते हैं कि सहयोग नगण्य है।
“मुश्किल से कोई BLA फॉर्म भरने में रुचि ले रहा है। कुछ को तो पता भी नहीं कि उनकी नियुक्ति हुई है,” आरा के BLO एम सफ़ीर अली ने कहा।
हालाँकि पार्टियों ने पलटवार किया। CPI(ML) का दावा है कि उन्होंने भोजपुर में कई दावे जमा किए हैं। वहीं जन सुराज कार्यकर्ताओं ने कहा कि वे सभी 14 प्रखंडों में सक्रिय हैं।
नाम कटने का पैमाना चौंकाने वाला है। पश्चिम चम्पारण में 1.91 लाख नाम हटाए गए, जिससे मतदाताओं की संख्या 27.6 लाख से घटकर 25.7 लाख रह गई। अधिकारियों के अनुसार इनमें से 70,000 मतदाता घर बदल चुके थे और 20,000 नाम डुप्लीकेट थे।
दिवाकर शर्मा और वाल्मीकिनगर के व्यापारी धनंजय सोनी जैसे लोगों के लिए — जिनकी पत्नी रंजना का नाम भी सूची से गायब हो गया — सुप्रीम कोर्ट का आदेश उम्मीद तो दे रहा है, लेकिन स्पष्टता नहीं।
अब बस एक हफ्ता शेष है, और मतदाताओं को लग रहा है कि समय हाथ से निकल रहा है।




