नई दिल्ली: विश्व बैंक की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में विकासशील देशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का प्रवाह 435 अरब डॉलर तक सिमट गया, जो 2005 के बाद से सबसे कम है। वहीं विकसित देशों में भी एफडीआई प्रवाह 336 अरब डॉलर रहा, जो 1996 के बाद का न्यूनतम स्तर है। यह गिरावट वैश्विक आर्थिक मंदी, व्यापार और निवेश अवरोधों, तथा बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों के कारण आई है।
विकासशील देशों में निवेश गिरने के कारण
रिपोर्ट में बताया गया कि वैश्विक मंदी की आशंकाओं के बीच पहले से ही FDI कमजोर हो रहा था। इस गिरावट से विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे की समस्याएं और बढ़ गई हैं। साथ ही गरीबी उन्मूलन और जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयास भी प्रभावित हो रहे हैं।
FDI में गिरावट केवल आर्थिक नहीं, सामाजिक चुनौती भी
विश्व बैंक के उप मुख्य अर्थशास्त्री अयहान कोसे ने चेतावनी दी है कि एफडीआई में गिरावट सिर्फ आर्थिक संकट नहीं, बल्कि सामाजिक विकास की राह में भी बाधा बन सकती है। उनका कहना है कि इसे पलटना रोजगार सृजन और सतत विकास के लिए आवश्यक है।
व्यापार अवरोधों और उच्च टैरिफ से आर्थिक नुकसान
रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में बढ़ते व्यापार अवरोध, उच्च टैरिफ और अनिश्चित नीतियों ने सीमा पार निवेश को धीमा कर दिया है। मुख्य अर्थशास्त्री इंदरमीत गिल ने कहा कि सरकारें इन बाधाओं को दूर करने के बजाय लगातार और नए अवरोध खड़े कर रही हैं।
सुधारों की आवश्यकता
रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि विकासशील देशों को निवेश आकर्षित करने के लिए व्यापार एकीकरण को बढ़ावा देना चाहिए और औपचारिक अर्थव्यवस्था में भागीदारी को बढ़ाने वाले नीतिगत सुधार करने चाहिए।
एफडीआई में गिरावट का दीर्घकालिक असर
एफडीआई प्रवाह में 10% वृद्धि तीन वर्षों में किसी विकासशील देश की जीडीपी में औसतन 0.3% की वृद्धि कर सकती है, जबकि व्यापार के लिए खुले और मजबूत संस्थानों वाले देशों में यह बढ़त 0.8% तक हो सकती है।
तीन बड़े देश कर रहे हैं निवेश आकर्षित
चीन, भारत और ब्राज़ील जैसे देशों ने 2012 से 2024 के बीच कुल एफडीआई प्रवाह का लगभग आधा हिस्सा प्राप्त किया। वहीं, यूरोपीय संघ और अमेरिका जैसे उन्नत देशों से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को 90% एफडीआई प्राप्त हुआ।