साइबर यूथ न्यूज़ | 22 अगस्त, 2025
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को स्थायी रूप से शेल्टर में रखने के अपने पहले के आदेश में बड़ा बदलाव किया है। कोर्ट ने अब इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर नीति बनाने के लिए विस्तारित कर दिया है।
मुख्य बिंदु:
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अब आवारा कुत्तों को हमेशा के लिए शेल्टर में नहीं रखा जाएगा। नसबंदी, टीकाकरण और डिवॉर्मिंग (कृमिनाशक दवा) के बाद उन्हें उसी इलाके में वापस छोड़ा जा सकेगा।
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केवल आक्रामक (Aggressive) या रेबीज़ से संक्रमित कुत्तों को ही शेल्टर में रखा जाएगा।
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नगर निगमों को प्रत्येक वार्ड में समर्पित फीडिंग ज़ोन बनाने का आदेश दिया गया है। सड़क पर कुत्तों को खिलाना अब प्रतिबंधित होगा। नियम तोड़ने वालों पर कानूनी कार्रवाई होगी।
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एनजीओ और व्यक्तियों को सुनवाई में शामिल होने के लिए कोर्ट की रजिस्ट्री में राशि जमा करनी होगी — एनजीओ को ₹2,00,000 और व्यक्तियों को ₹25,000।
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आवारा कुत्तों को गोद लेने की अनुमति होगी, लेकिन गोद लिए जाने के बाद उन्हें दोबारा सड़क पर छोड़ना सख्त मना है।
कोर्ट की टिप्पणी:
जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली पीठ ने पहले दिए गए आदेश को “कठोर” बताया और कहा कि जब तक नई राष्ट्रीय नीति नहीं बनती, तब तक एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) नियम लागू रहेंगे।
“नगर निकाय कुत्तों की नसबंदी, टीकाकरण, डिवॉर्मिंग कर उन्हें उसी इलाके में छोड़े। केवल आक्रामक या रेबीज़ से ग्रसित कुत्तों को न छोड़ा जाए।” – सुप्रीम कोर्ट
प्रतिक्रियाएँ:
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पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA India) ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा: “हर कुत्ते का दिन आता है – आज चाय की दुकान वाले शेरू, मंदिर की सीढ़ियों पर रानी और सोसाइटी ग्राउंड्स के मोती का दिन है।”
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मेनका गांधी, पूर्व केंद्रीय मंत्री और पशु अधिकार कार्यकर्ता ने भी फैसले का स्वागत किया, लेकिन “आक्रामक कुत्ता” की परिभाषा स्पष्ट करने की मांग की।
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वहीं, नोएडा के कुछ लोगों ने असंतोष जताया और कहा कि पहले का आदेश सार्वजनिक सुरक्षा के लिए बेहतर था।
पृष्ठभूमि:
11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की दूसरी पीठ ने 37 लाख डॉग बाइट्स और 54 रेबीज़ मौतों (2024) का हवाला देते हुए दिल्ली-एनसीआर से सभी आवारा कुत्तों को आठ हफ्ते में शेल्टर में भेजने का आदेश दिया था। उस आदेश की व्यापक आलोचना हुई और इसे अव्यावहारिक बताया गया।
आगे क्या?
अब देशभर में आवारा कुत्तों से जुड़े सभी मामलों को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया जाएगा, ताकि इस पर एक समान राष्ट्रीय नीति बनाई जा सके।




