क्या बिना सूर्यप्रकाश के समुद्र में बन सकती है ऑक्सीजन?
वैज्ञानिक समुदाय में डार्क ऑक्सीजन को लेकर गहरी बहस छिड़ी हुई है। पारंपरिक धारणा यह रही है कि जीवन की उत्पत्ति तभी संभव हुई जब जीवों ने ऑक्सीजन का उत्पादन करना शुरू किया और इसके लिए सूर्य की रोशनी आवश्यक थी। लेकिन नए शोध इस धारणा को चुनौती दे रहे हैं।
डार्क ऑक्सीजन थ्योरी पर मतभेद
हाल ही में वैज्ञानिकों ने यह दावा किया कि गहरे समुद्र की तलहटी में मौजूद खनिज पदार्थ सूर्य की रोशनी के बिना भी ऑक्सीजन का निर्माण कर सकते हैं। कुछ वैज्ञानिक इस विचार को स्वीकार कर रहे हैं, तो कुछ इसे खारिज कर रहे हैं।
इस विषय पर जुलाई में “नेचर जियो साइंस” में एक शोध प्रकाशित हुआ, जिसमें कहा गया कि समुद्र की गहराइयों में बिना सूर्यप्रकाश के ऑक्सीजन बन सकती है। इस शोध के प्रकाशित होने के बाद वैज्ञानिक समुदाय में तीव्र बहस छिड़ गई है।
खनिज कंपनियों की बढ़ी दिलचस्पी
समुद्री तलहटी में मौजूद खनिजों की खुदाई में रुचि रखने वाली कंपनियां भी इस शोध पर नज़र बनाए हुए हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, समुद्री तल में मौजूद आलू के आकार के खनिज पदार्थ पानी की धारा को अलग करने में अहम भूमिका निभाते हैं, जिससे इलेक्ट्रोलिसिस की प्रक्रिया के तहत हाइड्रोजन और ऑक्सीजन अलग हो सकते हैं।
इस नई खोज के कारण अब 2.7 अरब साल पहले जीवन की उत्पत्ति को लेकर वैज्ञानिकों की पुरानी मान्यताओं को चुनौती मिल रही है।
पर्यावरणविदों की चिंता
पर्यावरण वैज्ञानिकों का कहना है कि समुद्र में ऑक्सीजन निर्माण की प्रक्रिया को लेकर बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। साथ ही, गहरे समुद्र में खनिज पदार्थों की खुदाई से पर्यावरण को गंभीर खतरा हो सकता है।
ग्रीनपीस जैसी पर्यावरण संस्थाओं ने समुद्री खनिजों के खनन पर रोक लगाने की मांग की है। उनका मानना है कि समुद्र की तलहटी से खनिज निकालने की प्रक्रिया पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर सकती है।
प्रशांत महासागर में हुई खोज
डार्क ऑक्सीजन को लेकर शोध प्रशांत महासागर के क्लेरियन-क्लिपर्टन जोन में किया गया है। यह क्षेत्र मैक्सिको और हवाई द्वीप के बीच स्थित है, जहां कई खनिज कंपनियां खुदाई की तैयारी कर रही हैं।
रिसर्च में यह पाया गया कि समुद्र की सतह से 4 किलोमीटर नीचे कई प्रकार के खनिज बिखरे हुए हैं। इन खनिजों में मैगनीज, निकेल और कोबाल्ट शामिल हैं, जो इलेक्ट्रिक कारों की बैटरी और लो-कार्बन टेक्नोलॉजी के निर्माण में उपयोग किए जाते हैं।
वैज्ञानिकों के बीच विवाद
डार्क ऑक्सीजन के शोध को लेकर कनाडा की “द मेटल्स कंपनी” आंशिक रूप से वित्तीय मदद कर रही है। यह कंपनी यह समझने का प्रयास कर रही है कि इस शोध का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।
हालांकि, इस कंपनी ने वैज्ञानिक एंड्रयू स्वीटमैन और उनकी टीम की रिसर्च पर गंभीर सवाल उठाए हैं। कंपनी के पर्यावरण प्रबंधक माइकल क्लार्क का कहना है कि यह शोध “वैज्ञानिक खामियों से भरा” है और इसके निष्कर्ष तार्किक रूप से सही नहीं लगते।
स्वीटमैन की रिसर्च पर सवाल
जर्मनी के कील स्थित जियोमर हेल्महोल्ट्ज़ सेंटर फॉर ओशन रिसर्च के वैज्ञानिक मैथियास हेकेल का कहना है कि स्वीटमैन ने अपने निष्कर्षों को साबित करने के लिए ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं किए हैं।
फ्रांस के इफ्रेमर इंस्टीट्यूट के भू-रसायन वैज्ञानिक ओलिवियर रूक्सेल भी इस शोध पर संदेह जताते हैं। उनका कहना है कि समुद्री तलहटी से नमूने लेना एक जटिल प्रक्रिया है और हो सकता है कि उपकरणों में मौजूद हवा के बुलबुले के कारण ऑक्सीजन की मौजूदगी का पता चला हो।
क्या यह रिसर्च सही साबित होगी?
वैज्ञानिक स्वीटमैन इस विवाद पर जल्द ही आधिकारिक प्रतिक्रिया देने की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक बहस सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा होती है और इससे विषय को और गहराई से समझने में मदद मिलती है।
अभी इस शोध पर वैज्ञानिक समुदाय पूरी तरह सहमत नहीं है। इसे साबित करने के लिए और अधिक प्रयोगों और शोध की आवश्यकता है। जब तक यह पूरी तरह प्रमाणित नहीं हो जाता, तब तक डार्क ऑक्सीजन को लेकर विवाद जारी रहेगा।